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Monday, November 28, 2011
जीवन की नयी राह
सुबह से शाम तक डिब्बों में बंद जिंदगी जी रहे हैं हम... घर की जिंदगी....ऑफिस की जिंदगी...बाज़ार की जिंदगी... बच्चों की जिंदगी...हर डिब्बे का आकार अलग-अलग है, महक अलग-अलग है इस्तेमाल अलग-अलग है...लेकिन इन डिब्बों मैं कैद है हमारी खूबसूरत जिंदगी जो कुदरत ने हमें बक्शी है. यही कोई ३० दिन पहले तक मैं भी ऐसे ही डिब्बों में बंद जिन्दगी गुजार रही थी लेकिन कुदरत ने मुझे खुद इन डिब्बों से बाहर खींच निकाला. मैं हतप्रभ थी.. समझ नहीं पा रही ये क्या हो रहा है. तेज बुखार में मेरा माथा तप रहा था, कब मैं बेहोश हो गयी पता ही नहीं चला. लेकिन पल भर बाद मैं नयी दुनिया में थी. खुद को देख नहीं पा रही थी. मुझे दिल बैठता हुआ महसूस हुआ. लगा सामने से तेज रोशनी आ रही है. हजारों का जनसैलाब भी आगे बढ़ता आ रहा है....संवेदना से मुक्त चेहरे...सब अंजान... सब मेरी ओर बढते चले आ रहे है...तभी कुछ पहचाने चेहरे दिखे... अरे! ये तो अपने जानने वाले हैं...ये नवजात तो मेरा सृजन था...लेकिन ये तो मेरा साथ कोई १० साल पहले छोड़ गया था ...ये कहाँ से आ गया....मैं हाथ बढ़ा कर छू लेना चाहती थी...लेकिन ये क्या मेरे हाथ तो हिल-डुल भी नहीं पा रहे थे.......फिर हर तरफ अँधेरा ही अँधेरा दिखने लगा. आंखे खुली तो साँस नहीं ले पा रही थी. थोड़ी देर में ही सांसों की डोर की अहमियत समझ में आ गयी...नाख़ून अपना गुलाबी रंग बदल रहे थे...इनमें नीलिमा दिखने लगी थी और लगने लगा था कि जीवन बालू क़ी तरह हाथ से फिसलता जा रहा है. खटाखट एक के बाद एक फ्रेम बदलने लगे...जीवन में क्या किया...बस इतना ही... अरे अभी तो केवल ऑफिस के काम करने में व्यस्त थी बाकी दुनियादारी तो बहुत पीछे छूट गयी. अभी तो जीवन का आनंद उठाया ही नहीं...दुनिया ठीक से देखी ही कहाँ...सोचा था ये करुँगी...वो करुँगी लेकिन अब तो जीवन की डोर टूटती दिख रही है...मेरी नाउमीदी बढती ही जा रही थी...फिर न जाने क्या हुआ...रेत के फिसलने की गति कम हो गयी....सांसें सामान्य होने लगीं...लगा जीवन किसी ने सुनहरे गिफ्ट पेपर में लपेट कर मुझे दिया...जीवन पाकर फिर से तमन्नाए जवान होने लगी.. और अब जीवन को देखने का नजरिया बदल गया है. बीमारी ने यथार्थ के धरातल पर ला पटका मुझे और अहसास कराया कि जिंदगी में क्या मिस कर रही थी. काफी पहले पढ़ा था अमेरिका के एक कबीले के लोग जब निराश हो जाते हैं तो खुद अपनी कब्र खोदते हैं और उसमें रात भर रहते हैं सुबह सूरज की पहली किरण के साथ बाहर निकलते है....वे यह मानते हैं कि इसके बाद जीवन की नयी राह मिल जाती हैं. शुक्र है खुदा का कि मुझे अपनी कब्र खोदने की जरुरत नहीं पड़ी और जीवन की नयी राह नज़र आने लगी.
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मनोभावों की बहुत सुंदर और प्रेरक अभिव्यक्ति.
ReplyDeletehamari shubhkamnayen aapke sath hain.
ReplyDeleteder aaye durust aaye.kya leke aaye the kya leke jaoge.mast raho abad raho yaha raho ya allahabad raho.
ReplyDeletezindagi jab tak rahegi fursat milegi na kaam se
kuch samay aisa nikalo prem kar lo sriram se
जीवन की नयी राह awesome written ..so nice ..a path of a head to light
ReplyDeleteसच ही कहा है कहने वाले ने कि जहां चाह वहां राह...बेहतरीन प्रस्तुति के लिये साधूवाद....
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